विश्वकीर्तिमानक साहित्यकार डॉ. ओम् जोशी ने हिन्दी छन्द परम्परा को समकालीन यथार्थ के साथ साथ अभिव्यक्तिमय बनाए रखा है। विशेषणों की बात नहीं, परन्तु, हज़ारों हज़ारों दोहे तथा पचास हज़ार से अधिक मुक्तकों में भी उनकी काव्यशक्ति और सामर्थ्य की प्रवाहमयी धारा विद्यमान है। इनमें तत्काल भी है, समकाल भी है, यथार्थ भी है, दर्शन भी है, व्यंग्य भी है और रागात्मक तरलता भी। विश्लेष्य रचना ‘अथ अफ़सर महिमा’ के सारे कोण कुण्डली छन्द में अभिव्यक्त हुए हैं। वैसे ‘अफ़सर’ प्राशासनिक निर्णयों का कार्यसाधक अधिकारी होता है। किन्तु, हमारे लोकतन्त्र में वह व्यक्ति के रूप में नहीं, ‘पदछवि’ के रूप में लोकमानस में समुपस्थित है, उसी के कट आउट, उसी की अनेकवर्णी छवियाँ आदि पूरे व्यंग्य तरकशों के साथ इन कुण्डलियों में उतर आए हैं। साधारण भाषा में इसे ही ‘लालफ़ीताशाही’ कहते हैं, जो अफ़सरों के मनोविज्ञान और जनता में उसकी कसमसाहटों को व्यक्त करती है। हिन्दी गद्य व्यंग्य में अफ़सर महिमा पर अनेक पैने पैने व्यंग्य लिखे गए हैं। शरद जोशी का ‘अफ़सर’ व्यंग्य तो सदाबहार है। डाॅ. ओम् जोशी के ‘कुण्डली’ जैसे सर्वथा परिपक्व छन्द में अफ़सर महिमा के अनेक स्नैपशॉट, विलक्षण चित्र देखे जा सकते हैं। कुण्डली छन्द की विशेषता यह है कि इसका हर चरण इस छवि के यथार्थ को ठेलते हुए अगले चरण में आता है। यह सत्य भी है कि कार्यसाधक के रूप में यही ‘अफ़सर’ जनता से सीधे सम्पर्क में रहता है, किन्तु, लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं में जिस प्रकार की भ्रष्टता, अकर्मण्यता, अहंकार, विभागीय तालमेल का अभाव, नेता/अफ़सर गठजोड़, लोकपीड़ा की अनदेखी जैसे परिदृष्य नयनों के समक्ष आते हैं, तो अफ़सर महिमा इन रंगों, बदरंगों से मुक्त हो ही नहीं पाती।
अथ अफ़सर महिमा (Ath Afsar Mahima)
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