लोकाभिराम ‘श्रीराम’ ब्रह्मस्वरूप हैं, मर्यादा पुरुषोत्तम हैं और भारतीय संस्कृति के आदर्श प्रधानपुरुष | अयोध्या में अवतरित श्रीराम का जीवन न केवल भारतीयों, अपितु, सकल विश्व के लिए सम्प्रेरक है | सत्य, धर्म, निष्ठा, कर्तव्यबोध, कर्तव्यपालन और समाज के उच्चतम से निम्नतम तक के वर्ग के लोगों के लिए श्रीरामचन्द्रजी का जीवन आदर्श रहा है | न केवल मनुष्यों, अपितु, मनुष्येतर प्राणियों के लिए भी उनके मन में सहज सद्भाव आजीवन विद्यमान रहा | उन्होंने आजीवन संघर्ष किया और असत्य पर सत्य की विजय के वे परम प्रणेता और ‘सम्प्रेरक’ रहे | इन्हीं समस्त सन्दर्भों को लेकर मैंने ‘अनुपम रामायण’ शीर्षक से एक विशिष्ट ‘मुक्तक प्रबन्धकाव्य’ की संरचना की है | इसका समस्त कथानक एक ही चौबीस मात्राओं वाले मुक्तकों में उपनिबद्ध है| विश्व में अपनी तरह का यह विशेष अनूठा प्रयोग है | इसमें प्रयुक्त मुक्तकों की संख्या ‘चार हज़ार सात सौ छप्पन’ (४७५६) है | प्रस्तुत महाग्रन्थ में समस्त काव्यशास्त्रीय गुणों जैसे रस, रीति, अलंकार, माधुर्य, ओज और प्रसाद जैसे त्रिगुणों तथा औचित्य का पदे पदे सम्यक निर्वहन हुआ है | प्रस्तुत ग्रन्थ की भाषा सर्वथा परिनिष्ठित, मानक और सर्वग्राह्य ही है | भगवान् श्रीरामचन्द्र जी के व्यक्तित्व, चरित्र और उनके द्वारा किए गए अनेकानेक आश्चर्यबोधक कार्यों को जानने और समझने के लिए यह प्रस्तुत महाग्रन्थ सर्वाधिक उपयोगी है | इस ग्रन्थ को प्रखर गूँज प्रकाशन, रोहिणी, नई दिल्ली ने प्रकाशित किया है|
अनुपम रामायण (Anupam Ramayan)
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