” उढिलवा ” डायन बिसाही जैसी कल्पनातीत, बेमानी और निरर्थक कुप्रथा की घिनौनी परम्परा के खिलाफ सतर-दर-सतर एक सुलगता हुआ सवाल है “उढिलवा”. जनजातीय बाहुल्य झारखंड की पृष्ठभूमि और परिवेश पर आधारित, झारखंड की सर्वाधिक लोकप्रिय सरस, सरल, सुमधुर आंचलिक सम्पर्क भाषा खोरठा की महक से महमहाता हुआ उपन्यास ” उढिलवा “कभी तो फणीश्वरनाथ रेणु की यादों को कुरेदता है तो कभी प्रेम चंद की स्मृतियों को तरोताज़ा कर देता है. विराग जी की लेखनी के जादूई प्रवाह ने उपन्यास ” उढिलवा ” को पठनीय, प्रशंसनीय एवम अविस्मरणीय कृति बना दिया है. प्रोफेसर डा० लक्षमी कान्त झा सजल साहित्यकार सह वरिष्ठ पत्रकार कंकड़ बाग, पटना-800020.
उढिलवा (Udhilva)
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