हमारी दादी, नानी और मां की जबानों में | हम सबका चौबारा जो अब अकेला है शांत है उसको बच्चों की आस है, दादी नानी की चाहत है जो उसको कभी गुलजार कर देती थी वो बरगद, पीपल ,पकरिया का पेड़ जिसमें सुबह-शाम चिड़िया चहचहाती थी | जहां दिन में बुजुर्गों की टोली बैठती थी इकट्ठे होकर किससे गुनगुनाती रहती थी, उनको देख बच्चे भी पहुंच जाते थे और फिर शुरू होती थी कि किस्सों और आप बीतियों की एक लंबी झड़ी | चौबारा खामोश होकर भी बहुत कुछ कहता है, पीढ़ियां गुजरती है और साथ ही साथ दुनिया को देखने की दृष्टि भी बदल जाती है | हमारी यह पुस्तक सिर्फ किस्से और कहानियां नहीं चौबारों की कथा और व्यथा भी है |
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