उपन्यास नहीं जिंदगीनामा —————– ‘जमूरा!’ मात्र लेखक की कल्पना नहीं,बल्कि सड़कों पर मजमा लगा कर होने वाले विलुप्त तमाशों का पात्र है। लेखक ने अपनी निजी शोध द्वारा उसको उपन्यास का पात्र बनाकर, उस समय की सामाजिक तथा उसकी आर्थिक दशा का चित्रण बखूबी किया है। जमूरा, अपने मालिक को माई-बाप समझने वाला एक ऐसा किरदार है जो लेखक के भीतर जिन्दा है। जीवन की सुविधाओं से वंचित अपने को सदैव मालिक पर निर्भर पाता है। आज भी मालिक मदारी है और वह उस के आधीन रहने वाला मात्र ‘जमूरा’ —–यह बात अलग है कि जमूरा एक मदारी के पास से भागकर थोड़े सम्पन्न मदारी के पास चला जाता है ,सुविधायें ज्यादा मिल जाती है। लेकिन आम आदमी जमूरा का जमूरा ही रहा। लेखक ने जमूरा पात्र के माध्यम से गरीब तबकों की आर्थिक मजबूरी का चित्रण बखूबी किया है। उपन्यास को रोचक बनाने के लिये ‘पूँछ पुराण’ का व्यंगात्मक प्रसंग पाठक को रुचि में कहीं शिथिलता नहीं आने देता। सहज भाव से उपन्यास ‘जमूरा’ उतार चढ़ाव, हास परिहास की सीढ़ियाँ चढ़ता हुआ रोचक बन पड़ा है।
जमूरा (Jamoora)
Brand :
Language | Hindi |
Binding | Paperback |
Pages | 255 |
ISBN-10 | 9390889502 |
ISBN-13 | 978-9390889501 |
Publishing Year | 2021 |
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