देहाग्नि की ज्वाला (Dehagni ki jwala)

300 255
Language Hindi
Binding Paperback
Pages 121
ISBN-10 9394369473
ISBN-13 978-9394369474
Book Dimensions 5.50 x 8.50 in
Edition 1st
Publishing Year 2022
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Category:
Author: Rakesh Raman Shrivastav

“रक्षाबंधन के धागे की पवित्रता तो भावनाओं की पवित्रता से तय होती है। ऐसी पवित्र भावनाओं की आड़ में कई अपवित्र गाँठों के खुलने की भी परम्परा रही है। ऐसे कृत्रिम रिश्ते घर में प्रवेश करने और अपनी माशूका से मिलने जुलने का बहुत सशक्त माध्यम होते हैं और ये इसी लिए बनाये ही जाते हैं।” (इसी पुस्तक से) “प्रेम तो प्रकृत्ति है, यह स्वयं होता है…यह जरूरी थोड़े ना है कि तुम प्रेम करो, तभी मैं प्रेम करूँ।” (इसी पुस्तक से) “कौन कहता है कि दूरियों से मिट जाती है मुहब्बत, मिलने वाले तो ख्यालों में भी मिल आया करते हैं।” (इसी पुस्तक से) “कहते हैं कि वर्त्तमान जब सताने लगे, तो अतीत की यादें बहुत सुकून देती हैं।” (इसी पुस्तक से) ‘‘मत दूर जाना कभी इतना कि वक्त के फैसले पर अफसोस हो जाये…हो सकता है कि कभी तुम लौट के आओ और ये जिस्म मिट्टी में खामोश हो जाये’’ (इसी पुस्तक से) प्रेम, पीड़ा के गाँव मे ही शरण लेता है। उसे समंदर से अधिक नदी प्रिय होती है। नदी, जो कभी किसी के लिए नहीं रुकती…स्वयं अपना रास्ता बनाती है और बहती जाती है। प्रेम बावरा होता है उसे पीड़ा ही प्रिय होती है और पीड़ा देने वाला “अतिप्रिय”। (इसी पुस्तक से)

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