पर्यावरण संहार (Paryavaran Sanhar)

399 339
Language Hindi
Binding Paperback
Pages 138
ISBN-10 9394369457
ISBN-13 978-9394369450
Book Dimensions 5.50 x 8.50 in
Edition 1st
Publishing Year 2022
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Author: Mahendra Pandey

पूरी दुनिया में मनुष्य ने विकास के नाम पर पर्यावरण और प्रकृति से युद्ध छेड़ रखा है और प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन इस हद तक किया जा रहा है कि वैज्ञानिकों को पृथ्वी से जीवन समाप्त होने की चेतावनी बार-बार जारी करनी पड़ रही है| दार्शनिक फ्रेडेरिक ऐगेल्स ने 1850 के दशक में कहा था, “प्रकृति पर अपनी विजय से हमें आत्मप्रशंसा में विभोर नहीं होना चाहिए क्योंकि प्रकृति हरेक ऐसी पराजय का हमसे बदला लेती है”| यह कथन अब पानी की भयानक कमी, विषैली हवा, भूमि की घटती उत्पादकता, महासागरों के बढ़ते तल के कारण किनारों के डूबने, वन्य जीवों से पनपने वाली महामारी, चक्रवात, बाढ़, सूखा और अत्यधिक गर्मी के तौर पर सही साबित होने लगा है| पृथ्वी के ध्रुवों और पहाड़ों की चोटियों पर जमी बर्फ तेजी से पिघलने लगी है, जिसके कारण आने वाले वर्षों में नदियों के सूखने का खतरा बढ़ गया है और दूसरी तरफ महासागर अब किनारे की जमीन को निगलते जा रहे हैं| आर्थिक विकास के मूल में प्राकृतिक संसाधन ही हैं, जिनपर दुनिया की पूरी आबादी का बराबर अधिकार है – पर पूंजीवाद के दौर में पूंजीपतियों ने सरकारों के साथ मिलकर आर्थिक विकास के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों को लूटना शुरू कर दिया है और इसके प्रभाव से दुनिया की पूरी आबादी प्रभावित हो रही है|

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