कहानी की नायिका बचपन से अपनी मां को शक्ति के रूप में देखकर अपने भीतर ऊर्जा ग्रहण करती है और बड़ी होकर समाज में महिलाओं के प्रति गलत रवैया और गलत व्यवहार को ठीक करने के लिए पुलिस की नौकरी करना चाहती है। प्रिया के जीवन में आने वाली तमाम कठिनाइयों को लेखिका ने बहुत ही खूबसूरती से उजागर किया है और हर पंक्ति में यह प्रकट हुआ है कि लड़कियां लड़कों से कम नहीं होती । माता पिता से ही संस्कार पाते हैं बच्चे,ये भी एक संकेत मझे दिखाई दिया इस कथा में। महिला सशक्तिकरण की एक बहुत ही सशक्त मिसाल है कुसुम जी की यह कहानी “संघर्ष कब तक।” किसी भी विधा के लेखन के लिए चिंतन जीवन में जितना अनिवार्य है उतना ही अनिवार्य उसका प्रस्तुतीकरण। हम सब जानते है चिंतन एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जिसमें कोई भी व्यक्ति समाज की शुभता के लिए चिंतन के फल स्वरुप समाधान प्रस्तुत कर सकता है । लेखक की कलम चिंतन के मध्यम से किसी भी समस्या का समाधान करने का प्रयत्न करती है । चिंतन एक मानसिक प्रक्रिया है जिसे लेखक अपनी रचना के द्वारा समाज को प्रदान करता है।
प्रतिबिम्ब समाज का (Pratibimb Samaaj Ka)
Brand :
Language | Hindi |
Binding | Paperback |
Pages | 108 |
ISBN-10 | 9390889839 |
ISBN-13 | 978-9390889839 |
Book Weight | 154 gm |
Edition | 1st |
Publishing Year | 2022 |
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Category: Stories
Author: Kusum Acharya
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