क़लम है कहती, सत्य लिखो दिल कहता, अभिव्यक्त करो तुम कहते, मुझपर तो लिखो कुछ कहते, सामयिक लिखो कोई कहता, बस दर्द हीं लिखो कुछ समझाते, प्यार को लिखो मन कहता, बस प्यार को जिओ सम्वेदनाएँ और अभिव्यक्ति को लेखनी में यूँ हीं अभिव्यक्त करो बस, तुम यूँ हीं लिखा करो समझ न पाती क्या-क्या करूँ कुछ अपनी व्यथा-कथा कहूँ कुछ दूसरों की भी सुनती रहूँ कुछ दूसरों पर लिख भी जाऊँ या अपने मन की करती जाऊँ कुछ दूसरों के लिए लिखूँ या दूसरों में खुद को कहूँ एक- दूसरे की सुनते-करते मन-दर्पण में सँवरती जाऊँ
बूँद बूँद धारा (Boond Boond Dhara)
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