मेरी सास राबर्ट की सौतेली माँ थीं, पर मुझे बहुत ज्यादा मानती थीं अपनी बेटी की तरह। अभय और बाकी बच्चों के जन्म के समय भी उन्होंने मेरी बहुत सेवा सुश्रूषा की थी। परसौती की पूरी अवधि में, बिल्कुल अनपढ़ होते हुए भी उन्होंने अपने देसी तरीके से मेरे खान पान का बहुत ख्याल रखा था। रोज दिन में दो बार सरसों के गर्म तेल की मालिश से मुझे और मेरे नवजात बच्चे को तर रखती थीं …..रात होती तो स्नेहसिक्त स्वर में पास आकर धीरे से कान में फुसफुसाती हुई कहतीं, “ले मइयां …..पी ले तनी सा…..तुम्हारा सरीर भी गरम रही ….ताकत भी मिली अऊर नींद भी बढ़िया आईं ….”। कहती हुई मुझे स्टील के गिलास में भर कर रोज रात को देसी दारू पिलातीं। उनके स्नेह जताने के अनेक तरीकों में से एक पसंदीदा तरीका यह भी था।उनकी फिक्र झलकती थी इसमें मेरे शिशु जन्म से कमजोर हुए शरीर के लिए । हमारी जनजातीय परंपरा में मदिरा सेवन एक परंपरा है। किसी उत्सव में मांदर की थाप और झूमर नृत्य पर थिरकते पाँव हों या कोई गम की वेला…..घर आये मेहमान का स्वागत भी यदि मद से न किया जाये तो वह मेहमाननवाजी पर एक बट्टा होता है…..हमारी जीवन शैली में यह ऐसे घुला है जैसे जंगल, पलाश वन, हमारे ढोर डांगर……। मुझे मेरी सासुमां ने मेरे नाम मिशेल से कभी नही पुकारा।सदा मइयां कहकर ही पुकारा करती थीं मुझे।स्थानीय भाषा में यह शब्द पुत्री के लिए बहुत ही प्यार भरा संबोधन है…..जैसे बंगाल में बेटियों को मान दुलार से “माँ ” कहकर संबोधित करते हैं …..। अपनी दोनों माँओं की याद से तो आज मेरा मन भीज गया है…..थोड़े आँसू गिराना चाहती हूँ आज अकेले में, उन दोनों की यादों से हूक सी उठ रही मन में ….।” कहाँ गई तुम दोनों मुझे इस झंझावत में अकेला छोड़ कर ……कुछ भी न सोचा जाते वक़्त ….कैसे सहन करूंगी मैं इतना सब कुछ ….”, अब शब्द निकलने भी बंद हो गये हैं ।
रुई के झरने (Rui ke jharne)
Brand :
Language | Hindi |
Binding | Paperback |
Pages | 131 |
ISBN-10 | 9394369562 |
ISBN-13 | 978-9394369566 |
Book Dimensions | 5.50 x 8.50 in |
Edition | 1st |
Publishing Year | 2022 |
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