विवाहिता प्रेमिकाएं !! हां बिडंम्बनापूर्ण जरूर है इन दो शब्दों का साथ होना पर नया नहीं है सदियों से ढका छुपा रहा है स्त्री का ये रूप विवाहिता भी और प्रेमिका भी , विपरीत ध्रुवों की इन स्त्रियों को प्रकटतया कभी नहीं रखा गया एक साथ एक ही फ्रेम में ; एक स्त्री हर काल हर उमर में चाहती है बनी रहना प्रेयसी ही पर गृहस्थी की उलझनें पौरुष दम्भ से जूझते पति की लालसाएं। घर की बंदिशों की सीलन से भरी दीवारें उपेक्षा और तिरस्कार से त्रस्त स्त्रियां अंततः पा ही जाती है अपना वितान देह से परे अपने सपनों का पुरुष मनचाहे साथी का साथ हाथ थाम अंतहीन सफर पर , अब वह नहीं हैं बंद संदूक में पड़ी एक डायरी सी जिसके पृष्ठ भी हो चले थे बदरंग समय , वक्त की धूल को हटा उस स्त्री ने चाहा बस इतना ____ चाहे जाना टूटकर कि बची रहे जीने की ख्वाइशों की जगह यांत्रिक जीवन से परे बनी रहे नींदों में ख्वाबों की जगह । पर पुरुष चाहता है उसे गर्मियों में छांव की तरह जाडो़ं में धूप की तरह बदलते मौसम के साथ बदलते जाने का ये तरीका कभी रास नहीं आया स्त्री को , रेगिस्तान में भटकती नदियों तक दौड़कर जातीं ये विवाहिता प्रेमिकाएं घरेलू उलझनों से जूझती , रोटियां बनाकर पसीने से लथपथ तपती गर्मी में चिड़ियों के लिए पानी रखने के बहाने जा बैठती हैं यादों की मुंडेर पर , लिखे-अनलिखे खतों को बांचती हवाओं के साथ प्रेम गीत गुनगुनाती । ये प्रेमिकाएं कभी बूढी़ ना हुईं साल दर साल बीतते वर्षों बाद भी रहीं प्रेमी के दिल में स्मृति में _कमसिन , कमनीय उस उम्र की तस्वीर बन महकती रहे़गी वो स्त्रियां किताबों में रखे सुर्ख गुलाब की तरह।
शिलाएं मुस्कुराती है (Shilayen Muskati Hain)
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