सिर्फ बिहान की बात’ जीवन के रंगों के साथ जिए और भोगे पलों की कविता साक्ष्य होती है। वह अतीत की अनुकृति, वर्तमान की दृष्टा और भविष्य की सचेतक होती है, और जब तजुर्बेकार, उम्र के साथ लंबा सफर तय किये हुये कवि की रचनाधर्मिता की बात चलेगी तब ‘सिर्फ बिहान की बात’ होगी, प्रकाश की बात होगी, रोशनी के प्रत्येक प्रतिमानों की बात होगी। एक ईमानदार कविता पाठक मन को आंदोलित करती है। सोचने को मजबूर करती है, दिशानिर्देश देती है, शांत के पलों में मन को आनन्दित करती है, आँखों में स्वप्नों का संजाल बुनती है। दुख के पलों में सांत्वना देती है। और विषम हालातों में जरूरत पड़ने पर तनकर खड़े रहने और जंग ठान लेने तक का जज्बा देती है। सभी गुणों की झाँकी इस पुस्तक में दिखाई देगीं। संग्रह में कुछ अस्सी कविताएं, विभिन्न रंग-रूप भाव की हैं। कविता नदी के जल की तरह कभी शांत, तो कहीं शोर उठाती हुई, कहीं मुक्त छंद में तो कहीं कवित्त के विभिन स्वरूप में प्रवाहित हुई हैं। प्रत्येक कविता सन्देश देती हुई पाठक मन से तादाम्य स्थापित करती हुई यात्रा करती है। संग्रह की शुरुआत इस कविता से होती है, यह खासियत है कवि की जो महज चार पंक्तियों में वह सब कुछ बयान कर देता है, जो आगे के पन्नों में पढ़ने को मिलेगा। चुप रहने दो, खामोशियों को न हिलाओ, मौन हो योगी बनी यह ध्यान में संलग्न है। चेतना में जब किसी भी द्वार पर जाने लगे तो, पंथ के कंटक दिखा, मत इन्हें इतना डराओ। सुकोमल शब्दों से सज्जित कविता के ये बोल सुनकर स्वयं को कविता से जुड़ा हुआ मससूस करने लगा हूँ।
सिर्फ विहान की बात (Sirf vihaan ki baat)
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