हमारे यहाँ कितने ही संत -फकीर आये और चले गये । कितनी ही किताबें लोगों के द्वारा पढ़ी गईं । कितने ही लोगों की भीड़ मैदानों में साधुओं के प्रवचन सुनने वालों की लगी रहती है ,कितने ही लोग पाँच समय नमाज़ करते हैं लेकिन फिर भी इंसान के पल्ले कुछ भी क्यों नहीं पड़ा ? हम आपस में क्या चाहते हैं ? क्या इस ओर कभी मनन किया ?
Aao Thoda Vaqt Chura Len (आओ थोड़ा वक़्त चुरा लें)
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