मुझे पता नहीं था कि ऐसा बड़ा एक जाल बिछाया होगा। उस दिन मन मेरा भारी खराब था। सोचा बाहर से एक घेरा हो आऊँ। घर के भीतर भी गरमी काफी थी। चौखट और दरवाजे की दरार से माथा निकाल कर बाहर देखा। बाहर कई लड़के गिलास गिलास पी कर जोर-जोर से शोर मचा रहे थे। बाहर निकलने की मेरी हिम्मत बंधी नहीं। कहीं कोई मारने झपटे, कौन कुचल दे, कोई उठाकर ठिठोली करे, कौन हो सकता है पकड़ कर दोनोंं डैने काट कर छोड़ देगा। नहीं, बाहर चलूंगा नहीं। यह कोठा मेरे लिए स्वर्ग है। एक मात्र लड़का रहता है, जो कभी रहता है कभी नहीं। काफी कम रहता है घर पर। लड़का काफी शान्त। फिर भी दो बरसों के भीतर मैं उसे सही समझ नहीं पाया हूँ। तकिये पर माथा थमाए झरोखे की ओर ताक कर पता नहीं क्या कुछ सोचता रहता है। कभी कभार रात भर बैठे पढ़ता रहता है। पन्ना दरपन्ना लिखता जाता है। कभी भी टेबल को सजाता सहेजता नहीं। जो जहां मनचाहा बिखरा पड़ा रहता है। लड़के की फुरसत ही नहीं होती। कभी भी कानों से मकड़ी के जाले साफ नहीं करता। कभी-कभी मेरी ओर इस तरह ताके रहता है कि मैं शरम के मारे उसकी ओर देख नहीं पाता। उसके प्रति मेरी भी एक तरह से माया आ गयी है।
Alaukik Phool Aur Anya Chuni Hui Kahaniyan (अलौकिक फूल और अन्य चुनी हुई कहानियाँ)
Brand :
Language | Hindi |
Binding | Paperback |
Pages | 141 |
ISBN-10 | 9394369759 |
ISBN-13 | 978-9394369757 |
Book Dimensions | 5.50" x 8.50" |
Edition | 1st |
Publishing Year | 2023 |
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Language | |
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Binding | Paperback |
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