यह पुस्तक सहज-सजग भाव से लिखी गई कविताओं का एक संग्रह है । विवेक, सजगता (जाग), शक्ति, आनन्द और प्रियतम् जीवन के अति महत्वपूर्ण घटक/तत्व हैं । ये सभी तत्व अनहद-धुन की धारा से ही प्रवाहित होते हैं । इन्हीं तत्वों को ही केंद्र में रख कर यह संकलन किया गया है । उदाहरणत: “जुड़ा है ब्रह्म, अस्तित्व एकम, सृष्टि सहज सजगती, निकले तरंग, हर कृति रोशन, शाश्वत लोरी गुनगुनाती ।” अर्थात समस्त अस्तित्व एक है और उस ब्रह्म से जुड़ा हुआ है । सृष्टि सहज भाव से सजग है, अगर हम सजग दृष्टि से देखें तो हर कृति में रोशनी दिखाई देगी और हर कृति के अन्तः स्थल में विद्यमान चिरस्थायी (शाश्वत) अनहद-धुन भी सुनाई देगी ।

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