गाँव की विषम परिस्थितियों में जवानी में पति की मृत्यु के बाद स्त्री किस तरह जीवन व्यतीत करती है, यह वही जानती है। अंजली की बइया (माँ) झिंना वाली उर्फ जसोदा पति की मृत्यु के बाद बड़े जतन से अंजली को पालपोस कर बड़ा करती है। पुरुष प्रधान समाज के बीच नारी की वेदना से समाज को अवगत कराना सराहनीय और उत्कृष्ठ लेखन की मिसाल है। यह कह देने से कि, ‘नारी तुम केवल श्रद्धा हो’ से नारी को समाज में यथोचित सम्मान नहीं मिलने वाला है। उसे अपनी लड़ाई स्वयं लड़नी पड़ेगी। ईमानदार संकल्प लेकर शुरू की गई लड़ाई में न नारी जीतती है, न पुरुष जीतता है, जीत तो संकल्प, हिम्मत और सच्चे उद्देश्यों की होती है, यही उपन्यास का प्राणतत्व है। जिसे लेखक ने खूबसूरती से लिखा है। प्रेम और विश्वास की पृष्ठभूमि पर उपन्यास आगे बढ़ता है। मर्यादा के अन्दर रहकर नारी को समाज में ………….
Anjali (अंजली उपन्यास)
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