मनुष्य के ह्रदय में प्रेम पनपना एक दैवीय क्रिया है जिसे वह स्वभाव के अनुरूप अपने चित्त में आत्मसात करता है, इस भवसागर में प्राणि मात्र को यही अपेक्षा रहती है कि, उसे प्रेम के बदले में प्रेम ही मिले! जितना प्रेम उसके ह्रदय में उतरा है, उससे कहीं अधिक प्रेम उसे किसी अन्य से प्राप्त हो, किंतु फिर भी इस जगत में सदियों से निश्छल प्रेम सदा उपेक्षित रहा है वह निश्छल प्रेम जो स्वार्थ के मोह से सदा तटस्थ रहा, जिसे केवल प्रेम के अतिरिक्त किसी अन्य लौकिक सुख से कोई लगाव नहीं था, जो केवल प्रीत की धुन में बावला होकर कल्पनाओं में विचरण कर, नेह की आशा में प्रतीक्षारत था, इसे सृष्टि का अवगुण ही कहा जा सकता है कि, निश्छल प्रेम सदैव अवसरवादी मनुष्य के मोह में उलझकर, जीवनभर एकाकी रहता है, जहाँ निश्छल प्रेम की आस में जीवमात्र को केवल “नेह के आँसू” पुरस्कार स्वरूप प्राप्त होता है।
Chanakya Neeti (Aadhunik Jeevan Ke Liye Chanakya Neeti Ki Rananeeti
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