सिमरन कपड़े बदल कर लेट तो गई पर आँखों से नींद कोसों दूर थी। कभी अपने पर क्रोध आता कि अच्छा खासा मरने गई थी, अगर कर ही लेती हिम्मत तो इस मानसिक प्रताड़ना से सदा के लिए मुक्ति तो मिल जाती। ये रोज रोज का किस्सा तो खत्म हो जाता। फिर लगता जान देना किसी समस्या का हल नहीं है। जब अपना जीवनसाथी खुद चुना है तो अब जो भाग्य दिखाएगा वह तो भोगना ही पड़ेगा। कोई और सहारा है भी तो नहीं। माता पिता से तो उसी दिन रिश्ता टूट गया था जब करन के साथ मुंबई भाग कर आ गई थी। सारी घटनाएँ एक के बाद एक चलचित्र की तरह आँखों के सामने घूम रही थीं। अपनी सहेली करुणा की बड़ी बहन के विवाह में शामिल होने गई थी सिमरन। वहीं करन से मुलाकात हुई, जोकि करुणा के मामा का बेटा था और मुंबई में नौकरी करता था। उम्र के ऐसे दौर में थी सिमरन, जब युवक युवतियों का एक दूसरे के लिए आकर्षण सहज ही होता है। उस पर करन ने सिमरन को आकर्षित करने का कोई अवसर नहीं जाने दिया। अपने हुस्न की इतनी तारीफ पहली बार सुनी थी उसने, और वह स्वयं भी तो रीझे बिना न रह सकी करन पर। तीन दिन के लिए आया करन पूरे सप्ताह के लिए वहाँ रुक गया था। इस बीच दोनों रोज मिलते। इसमें उनकी सहयोगी बनी थी करुणा।
Chand Fir Nikala (चाँद फिर निकला)
Brand :
Language | Hindi |
Binding | Paperback |
Pages | 176 |
ISBN-10 | 9394369066 |
ISBN-13 | 978-9394369061 |
Edition | 1st |
Publishing Year | 2022 |
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Category: Stories
Author: Archana Saxena
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