सिमरन कपड़े बदल कर लेट तो गई पर आँखों से नींद कोसों दूर थी। कभी अपने पर क्रोध आता कि अच्छा खासा मरने गई थी, अगर कर ही लेती हिम्मत तो इस मानसिक प्रताड़ना से सदा के लिए मुक्ति तो मिल जाती। ये रोज रोज का किस्सा तो खत्म हो जाता। फिर लगता जान देना किसी समस्या का हल नहीं है। जब अपना जीवनसाथी खुद चुना है तो अब जो भाग्य दिखाएगा वह तो भोगना ही पड़ेगा। कोई और सहारा है भी तो नहीं। माता पिता से तो उसी दिन रिश्ता टूट गया था जब करन के साथ मुंबई भाग कर आ गई थी। सारी घटनाएँ एक के बाद एक चलचित्र की तरह आँखों के सामने घूम रही थीं।
Chand Fir Nikala (चाँद फिर निकला)
Brand :
Language | Hindi |
Binding | Paperback |
Pages | 176 |
ISBN-10 | 9394369066 |
ISBN-13 | 978-9394369061 |
Book Dimensions | 5.50 x 8.50 in |
Edition | 1st |
Publishing Year | 2022 |
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Category: Stories
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Author: Archana Saxena
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