जैसे चित्त में राग रहने से द्वेष भी रहता है अर्थात्् अगर आपके मन में किसी के प्रति राग रहेगा तो यह निश्चित बात है कि अन्य किसी के प्रति आपके मन में द्वेष भी रहेगा। इस क्लेश रूप नकारात्मक भाव को भी आप अपने कल्याण के लिए, हित के लिए, पवित्रता के लिए, उन्नति के लिए उपयोग कर सकते हैं, क्योंकि अधिकांश सांसारिक अथवा लौकिक लोगों के भीतर, अपितु, कई निवृत्ति मार्ग के साधकों में भी यह भाव दिखाई देता है। इसलिए मैंने यही उदाहरण लिया है समझाने के लिए, क्योंकि,जो स्वभाव अधिकतर लोगों में दिखाई देता है, उसका उदाहरण देने से सबको आसानी से समझ में आ जाता है और उसको ग्रहण करके चरितार्थ करने में भी आसान हो जाती है। इसलिए मैं कहता हूँ अविद्या को, अज्ञानता को, मूर्खता को, मिथ्याज्ञान को, बुद्धिहीनता को, छल-कपट को, अविवेक को, अजागरूकता को, अचेतनता को, अस्वच्छता को, negligency,
Divya Manav Nirman Mein Divya Chintan (दिव्य मानव निर्माण में दिव्य चिंतन)
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