Divya Manav Nirman Mein Divya Chintan (दिव्य मानव निर्माण में दिव्य चिंतन)

250 213
Language Hindi
Binding Paperback
Pages 112
ISBN-10 9394369880
ISBN-13 978-9394369887
Book Dimensions 5.50 x 8.50 in
Edition 1st
Publishing Year 2023
Amazon Buy Link
Kindle (EBook) Buy Link
Author: Rastraputra Shri Kripasindhu

जैसे चित्त में राग रहने से द्वेष भी रहता है अर्थात्् अगर आपके मन में किसी के प्रति राग रहेगा तो यह निश्चित बात है कि अन्य किसी के प्रति आपके मन में द्वेष भी रहेगा। इस क्लेश रूप नकारात्मक भाव को भी आप अपने कल्याण के लिए, हित के लिए, पवित्रता के लिए, उन्नति के लिए उपयोग कर सकते हैं, क्योंकि अधिकांश सांसारिक अथवा लौकिक लोगों के भीतर, अपितु, कई निवृत्ति मार्ग के साधकों में भी यह भाव दिखाई देता है। इसलिए मैंने यही उदाहरण लिया है समझाने के लिए, क्योंकि,जो स्वभाव अधिकतर लोगों में दिखाई देता है, उसका उदाहरण देने से सबको आसानी से समझ में आ जाता है और उसको ग्रहण करके चरितार्थ करने में भी आसान हो जाती है। इसलिए मैं कहता हूँ अविद्या को, अज्ञानता को, मूर्खता को, मिथ्याज्ञान को, बुद्धिहीनता को, छल-कपट को, अविवेक को, अजागरूकता को, अचेतनता को, अस्वच्छता को, negligency, आलस्य, प्रमाद, बेहोशी, ईर्ष्या, हिंसा, लोभ, अपुरुषार्थता, अकर्मण्यता, अन्याय, असत्य को त्याग करने के लिए उनके प्रति प्रेम या राग के बजाय घृणा एवं द्वेष कीजिए। तब उनके जो विपरीत गुण, कर्म, स्वभाव हैं, अर्थात्् विद्या, ज्ञान, विवेक, पुरुषार्थता, स्वच्छता, सरलता, अहिंसा, न्याय, सत्य आदि के प्रति राग भाव पोषण करके आप निश्चय ही श्रेष्ठ गुणों को प्रेम कर सकते हैं। क्योंकि, मनुष्य जिनको प्रेम करता हैं, या जिनके प्रति मनुष्यों का राग होता हैं, उनको प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करता हैं, पुरुषार्थ करता हैं। सोच लीजिए कोई रुपए से प्रेम करता है, तो वह व्यक्ति रुपए को अधिकाधिक रोजगार करने के लिए समय लगाएगा, पुरुषार्थ करेगा।

Language

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Divya Manav Nirman Mein Divya Chintan (दिव्य मानव निर्माण में दिव्य चिंतन)”

Your email address will not be published. Required fields are marked *