यह दृष्टिकोण इतिहास को व्यक्तियों और राजाओं की कहानियों के रूप में देखने के कारण है। जबकि मानव समाज उससे कई हजारों-लाखों वर्षों से भारत में विद्यमान मानव समाज, जो कि अन्ततः ईसा से हजारों वर्षों पहले गणों से आगे जनपदों और महा-जनपदों में विकसित होकर साम्राज्य की ओर अग्रसर हो रहा था; बिना अपने किसी पिछले इतिहास के ऐसा नहीं हो सकता। अतः इतिहास वह नहीं होता जिसमें राजाओं और राज्यों के उत्थान-पतन के किस्से-कहानियां होती हैं, बल्कि इतिहास वह होता है जिसमें मानव समाज के विकास, उसमें उपजे अन्तर्द्वंद और उसके परिणामस्वरूप होने वाले परिवर्तनों का लेखा जोखा हो।
Gantantra Aur Rashtrvaad (‘Bharat mein loktantr’ shrinkhala kee pahli pustak) गणतन्त्र और राष्ट्रवाद (‘भारत में लोकतंत्र’ श्रृंखला की पहली पुस्तक)
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