अब कोई ख़्वाहिश न कोई आस बाक़ी है फ़क़त चिड़ियों की चोंच भर प्यास बाक़ी है दिल नहीं, धड़कन नहीं, सीने में अब मेरे क्या पता ये किस तरह इक सांस बाक़ी है घर नहीं, कूंचा नहीं, है दश्त का आलम हाँ मगर इस फूल में कुछ बास बाक़ी है छोड़ कर जाऊँ मैं दुनिया ग़म नहीं इसका ना-रसाई का मगर एहसास बाक़ी है मैकशी ने कस के रख दी ज़िन्दगी ऐसे अब इधर की, न उधर की, लाश बाक़ी है मौत से कह दो ठहर जायेगी दम भर को चार मिसरों का ज़हन में रास बाक़ी है
Gustaakhiyaan (गुस्ताखियाँ )
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