रात की कालिमा अपना मुख छुपाकर चाँद को निहार रही थी और गाड़ी अपनी पूरी रफ्तार से रात की नीरवता भँग करती आगे बढ़ रही थी। सहयात्री अपने-अपने बिस्तर पर दुबके सोने का प्रयास कर रहे थे। उसने चारोंं ओर नजर दौड़ाई, फोन पर माँ को शुभरात्रि कहा और वह भी सोने का उपक्रम करने लगी। अभी-अभी उसने शहर आकर कॉलेज ज्वाइन किया था और पहली छुट्टी में घर जा रही थी। बहुत खुश थी, माँ को उसने कहा था कि सुबह वह उसके हाथ का बनाया अपना मनपसंद खाना खाएगी। होस्टल में माँ के हाथ के खाने का स्वाद कहाँ था। नींद में ही उसने महसूस किया कि किसी ने उसके चेहरे पर रौशनी डाली है। वह चिहुँक उठी। वह समझे तब तक दो मजबूत हाथों ने उसे उठा लिया। वह चीखती रही, मदद के लिए सहयात्रियों से गुहार लगाती रही और धीरे-धीरे उसकी चीख कराह में बदल गयी। अर्धबेहोशी में भी उसने महसूस किया कि सभी जैसे सोने का नाटक कर रहे हों और वह बेहोश होती चली गयी। रात की कालिमा को अपने धवल रौशनी के आगोश में छुपा सूरज उदय हो रहा था, उसने आंखें खोली… अब सब स्पष्ट था। दो-चार पुलिसकर्मियों के साथ एक स्ट्रेचर भी था और उसे उसपर लिटाया जा रहा था और वह घृणा और नफरत की नजरों से मुर्दों की उस बस्ती में अपने जीवित होने का प्रमाण दे रही थी।
Jivan chakra (जीवन चक्र)
Brand :
Language | Hindi |
Binding | Paperback |
Pages | 84 |
ISBN-10 | 9394369791 |
ISBN-13 | 978-9394369795 |
Book Dimensions | 5.50 x 8.50 in |
Edition | 1st |
Publishing Year | 2023 |
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Categories: Prose, Short Stories, Stories
Author: Dr. Madhubala Sinha
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