वर्ष 1921 में महात्मा गाँधी ने जब असहयोग आन्दोलन की घोषणा की थी तब चन्द्रशेखर की उम्र मात्र 15 वर्ष थी और वे उस आन्दोलन में शामिल हो गए थे। इस आन्दोलन में चन्द्रशेखर पहली बार गिरफ्तार हुए थे। इसके बाद चन्द्रशेखर को थाने ले जाकर हवालात में बंद कर दिया। दिसम्बर में कड़ाके की ठण्ड में आज़ाद को ओढ़ने–बिछाने के लिए कोई बिस्तर नहीं दिया गया था। जब आधी रात को इंसपेक्टर चन्द्रशेखर को कोठरी में देखने गया तो आश्चर्यचकित रह गया। बालक चन्द्रशेखर दंड-बैठक लगा रहे थे और उस कड़कड़ाती ठंड में भी पसीने से नहा रहे थे। अगले दिन आज़ाद को न्यायालय में मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया। जब मजिस्ट्रेट ने चंद्रशेखर से पूछा “तुम्हारा नाम”। चन्द्रशेखर ने जवाब दिया “आज़ाद ”। फिर मजिस्ट्रेट ने कठोर स्वर में पूछा “पिता का नाम”। फिर चंद्रशेखर ने जवाब दिया “स्वतंत्रता” और पता पूछने पर चंद्रशेखर ने जवाब दिया “जेल”। चंद्रशेखर के इन जवाबों को सुनकर जज बहुत क्रोधित हुआ और उसने बालक चंद्रशेखर को 15 कोड़े की सजा सुनाई। चंद्रशेखर की वीरता की कहानी बनारस के घर – घर में पहुँच गयी थी और इसी दिन से उन्हें चंद्रशेखर आज़ाद कहा जाने लगा वर्ष 1922 में गांधीजी ने चौरी-चौरा कांड से नाराज होकर असहयोग आन्दोलन वापिस ले लिया था। जिसके कारण रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आज़ाद और अशफाकुल्ला खान नाराज हो गए थे। जिसके बाद आज़ाद “हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन” संगठन के सक्रिय सदस्य बन गए।
Jyotipunj Pandit Chandershekhar Azad (ज्योतिपुंज पंडित चंद्रशेखर आज़ाद)
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