हम सभी ने छात्र जीवन में कबीर और रहीम को अपने हिंदी साहित्य के पाठ्यक्रम में जरूर पढ़ा होगा। पेशे से शिक्षक डॉ आर के तिवारी “मतंग” को आज के दौर का कबीर कहें या रहीम कहें तो अतिश्योक्ति न होगी। प्रभु श्रीराम की नगरी अयोध्या निवासी “मतंग” जी की रचनाओं को आप पढ़ें तो आपको भी उनके दोहों में कबीर और रहीम की झलक ही मिलेगी। ठेठ देसज भाषा अवधी में “मतंग” दो-दो पंक्तियों में बेहद सरल तरीके से अपने आसपास के माहौल पर कटाक्ष करते नजर आएंगे। वह अपने समाज की कुरीतियों पर कटाक्ष करते हैं तो साथ ही अपनी रचनाओं के जरिए निर्गुण ब्रह्म की उपासना करते नजर आते हैं। जितना थोड़ा सा ही उन्हें पढ़ने का अवसर मिला मुझे आज के साहित्यिक सड़ांध भरे माहौल में डॉ आर के तिवारी “मतंग” अपनी मौलिक देसज रचनाओं के जरिए एक ताजी सुगंध भरी बयार के रूप में नज़र आते हैं। अभी तक की उनकी छह पुस्तकों के प्रकाशन की उन्हें बहुत बहुत बधाई एवं सातवीं पुस्तक “मतंग के दोहे” के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएं। राजीव तिवारी’बाबा’ संकल्पनाकर्ता (नवयोग) संपादक,पब्लिक आंदोलन
Matang ke dohe (मतङ्ग के दोहे)
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