हिन्दी कथा संसार में शिवानी ‘शांतिनिकेतन’ अपनी ‘मुड़ी हुई पर्चियां’ संकलन के साथ प्रवेश कर रही हैं। अट्ठारह कहानियों का यह संग्रह हिंदी जगत में सर्वथा एक नया हस्ताक्षर है, जिसके माध्यम से प्रत्येक कहानी में जीवन का स्थिर चित्र उकेरा गया है। शिल्प की दृष्टि से हर कहानी में कथानक, संवाद, वातावरण, उपसंहार और शीर्षक आदि का निर्वाह बड़ी स्वभाविकता के साथ हुआ है। कहानियों का वैशिष्ट उनका नयापन तो है ही पर उससे भी अधिक प्रभावी तत्त्व यह है कि इनमें नई कलम की अनगढ़ता या अव्यवस्था नहीं है बल्कि सुव्यवस्थित चित्र से जीवन की, रिश्तों की, पारस्परिकताओं की, अंतर्द्वंद्वों की परख की गई है और पूरी संवेदनशीलता के साथ अत्यंत ही स्वाभाविक, प्रचलित व सुबोध भाषा में इस तरह अभिव्यक्त किया गया है कि यह पाठक के मर्म को न केवल स्पर्श करता है बल्कि उसे झकझोर देता है, कभी भावुक बना देता है तो कभी रुला देता है और किसी गहरे चिंतन में छोड़ देता है जो अच्छी कहानी की विशेषता होती है। ऐसी कहानियाँ पाठक के मन को चिंतन परक बनाकर उसे सृजनशील बना देती है। शिवानी का यह संग्रह इस सृजन संभावना को प्रवाह देता है।
Mudi hui Parchiyaan (मुड़ी हुई पर्चियां)
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