Mujhme Jinda Hain Yaar Ki Aankhen (Kaaljayi Padya Rachnaaen) ‘मुझमें जिंदा हैं यार की आँखें’ (कालजयी पद्य रचनाएँ)

280 238
Language Hindi
Binding Paperback
Pages 167
ISBN-10 9389984963
ISBN-13 978-9389984965
Book Dimensions 5.5" x 8.5"
Edition 1st
Publishing Year 2023
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Category:
Author: Ramanuj Anuj

25 जुलाई 1958 (गुरुपूर्णिमा) को गाँव धोवखरा, जिला रीवा (मध्यप्रदेश) में मुंशी रामदुलारे श्रीवास्तव एवं श्रीमती रामदुलारी के घर-आँगन में जन्में रामानुज ‘अनुज’ विज्ञान स्नातक हैं। अनेक पुरुस्कारों से सम्मानित रामानुज अनुज अद्भुत साहित्य-सृजक हैं, यह कहते हुए मुझे तनिक भी संकोच नहीं है। हिंदी गद्य और पद्य दोनों ही विधाओं में उनकी लेखनी बराबर चलती है। सरल-सहज, प्रवाहमय भाषा, दृश्यों पर बारीक पकड़ के साथ लयात्मक अभिव्यक्ति उनकी रचनाओं की खासियत है। हमें अपने मध्य उपस्थित देश-गाँव की माटी से जुड़े इस रचनाकार को अधिक से अधिक पढ़ना होगा। कहानी, गीत, ग़जल, व्यंग्य और उपन्यास की इनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हैं, और सभी का रचना संसार आम आदमी, आम जनजीवन और आम विसंगतियों का लेखा-जोखा का सजीव चित्रण है। कृतियाँ: गीत, नवगीत: सलिला, रोटी सेंकता सूरज, बोल उठी सिंदूरी शाम, चल साजन घर आपने, माटी के बोल, अलगनी में टँगी धूप। ग़जल संग्रह: मैं बोलूँगा, अभी सुबह नहीं, अनकहा सच, दस्तार, अभी ठहरा नहीं हूँ, जिंदगी ग़ज़ल बन गई, करती है संवाद हवा, तीसरी आंख, बनी रात की प्रहरी शाम, झाँक रहे हैं भीतर लोग, बुलबुल तरंग, ध्वनि तरंग, हजल के बहाने, और हजल बन गई, बस एक हजल चाहिए, काहे होत उदास। कथा संग्रह: लेलगाड़ी, लामट बेटा, हलो हम किस्से बोल रहे हैं। व्यंग्य संग्रह: राग देहाती, मुच्छ नहीं तो कुच्छ नहीं। उपन्यास: जूजू, मैं मौली (तीन खण्डों में), कैसी चाहत, झुके हुए लोग, मंगला, अपुन पेट बोल रये है, जमूरा, गेल्हा, वनराज (5 खण्डों में), मृणालिनी, गौरी, मैं वे और वो, सुर न सधे क्या गाऊँ मैं, मालिनी, मनगीरा, अंजली, बड़ेबर(कुदरत का जाँबाज़ कारीगर)।

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