वास्तव में यह काव्य प्रतिभा को प्रदर्शित करने के बजाए अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का प्रयास मात्र है । जीवन में आए उतार चढ़ाव और पड़ावों में मिले लोग इसके प्रेरणास्रोत रहे । मुझे याद नहीं है कि कोई भी कविता जानबूझकर लिखी गई हो । जब भी, जहां भी विचार आया उसे लिख लिया गया, क्रमबद्ध कर लिया गया । इस तरह से अधिकांश कविताएँ अस्तित्व में आ गयीं । मित्र मंडली में कभी कभार कविताओं को सुनाने पर सकारात्मक प्रतिक्रिया प्राप्त हुई । कुछ मित्रों ने सलाह दी तो इन्हें प्रकाशित कराने का विचार आया । पुस्तक के प्रकाशन में लाल चंद्र यादव जी की प्रेरणा एंव सहयोग निर्णायक रहा इसके लिए मैं उनका धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ । कुल मिलाकर अब कविता संग्रह आपके समक्ष प्रस्तुत है आशा है आप सभी काव्य प्रेमी पाठकों का पूर्ण स्नेह प्राप्त होगा ।
Priy Tum Chalte Rahna (प्रिय तुम चलते रहना)
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