एक जापानी शब्द है ‘पेरा-पेरा’, जिसका असली अर्थ है ‘धाराप्रवाह या प्रवाहमय’। यदि कोई जानकार या विद्वान व्यक्ति अपनी बुद्धि लगाकर इसे ‘पेरने या सताने’ के अर्थ में ले ले तो उसमें इस शब्द की क्या गलती है। ऐसी स्थिति में मैं समझ समझकर नासमझ बनने वाले विद्वानों या जानकारों को ‘पेराप्यूटिक’ कहूं या ‘थेराप्यूटिक’! यह मैं भविष्य निर्माताओं अर्थात् सुधी पाठकों के ऊपर छोड़ता हूं। अस्तु, मुझे असंस्तुत को तो संस्तुत करना ही पड़ेगा. इस उपन्यास का नाम है ‘तुलसी की रत्ना’। यह तो एक नाम ही है। लेकिन कोई इसका भिन्न-भिन्न अर्थ लगा ले तो इसमें इस उपन्यास की लेखिका की क्या भूमिका! लेकिन भूमिका (शब्द अत्यल्पता) से डरके भूमिका (अच्छाई) के भूमिका (गुणगान) से भागूं तो वह कतई जायज नहीं। अतः इसकी भूमिका (विषयवस्तु की पूर्व सूचना) हेतु मुझे किसी भी दशा में औपन्यासिक भूमिका तो बांधनी ही होगी।
Tulsi Ki Ratna (तुलसी की रत्ना)
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