कहने लगी, “आज लगभग पन्द्रह दिनों के बाद मैं कमरे से बाहर निककिशन के हाँ कहने के बाद भी उर्मि कुछ देर चढ़ते सूरज को निहारती हुई गहरी सोच में डूबी रही। किशन ने भी उसे नहीं टोका, फिर वह नजरें चुराती हुई संभल कर ली हूँ और मुझे ऐसा लगता कि मैं जिन्दगी का साथ ज्यादा नहीं निभा पाऊँगी। तुमने हर तरह से मेरा साथ दिया है और अब भी दे रहे हो। तुम खुद मुश्किलों से घिर गए फिर भी तुमने मेरा साथ नहीं छोड़ा। बदले में मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर पाई। मुझे लगने लगा था, जैसे तुम मेरी आत्मा से मेल खाते हो और वह तुम्हारे लिए ही बनी है। इस महामारी ने मुझे यह सब स्वीकारने की हिम्मत दी है। अब अगर मुझे जीने का मौका मिला तो दुनिया की कोई ताकत, कोई आदर्श, कोई सिद्धांत, कोई प्रवंचना मुझे तुमसे अलग नहीं कर सकेगी। आज से पहले मैंने जिन्दगी के प्रति ऐसी चाहत कभी महसूस नहीं की। काश आज मैं तुम्हारे स्वागत – सत्कार में कुछ कर पाती, कुछ लिख पाती…”
Urmi (उर्मि)
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