मेरा यह कविता संग्रह आपके” सम्मुख प्रस्तुत है। “ज़िंदगी को ज़िंदगी पुकारती” इसमे जीवन के ठेरों आयाम दर्शायें है। कुछ मधुर एहसास कुछ बाहरी एहसास जो कि दुनिया के हैं। मेरी कविताओं में मैंने वो सब कहना चाहा है जो मुझे दिखा, महसूस हुआ और लिख दिया।, “मिटे हैं अरमान सारे, हो गये खामोश तारे।” “तारे” कविता का सार है। ऊँची उड़ानों से आहत घायल पंछी की पीड़ा “गरम आँसुओं की” कविता में दिखायी देगी। “अपनी छाया” कविता में कवयित्री ने खुद को अपनी एक परछाई मात्र समझ लिया है, जो थक गई है।
Zindagi Ko Zindagi Pukarti (ज़िन्दगी को ज़िन्दगी पुकारती)
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